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मन की पीड़ा : थानों पर बैठने वाले  पत्रकार....? ( नकारात्मकता से सकारात्मकता तक...)

  • 05 Feb 2022

एल.एन. उग्र
जी पत्रकार अलग अलग हो गए हैं,कोई कोई किसी तरह का पत्रकार है, कोई किसी तरह का पत्रकार है,कोई सामान्य पत्र कार्, कोई विशिष्ट पत्रकार है, पत्रकार तो पत्रकार हैं, वे अखबार के प्रतिनिधि हैं, इसलिए वह पत्रकार हैं, और पत्रकार हैं इसलिए उनका कुछ अलग धर्म होना चाहिए, ऐसा मेरा मानना है, पर पत्रकारिता में स्वाभिमान का पुट होना चाहिए, स्वाभिमान पूरी तरह से होना चाहिए,वही पत्रकारिता पत्रकारिता... l सिर्फ सरकारी मशीनरी में अपनी पहचान बनाने तक के उद्देश्य को पूरा करने वाली पत्रकारिता नहीं है.. किसी नकारात्मक बात से हम सकारात्मक बात की ओर चलेंगे.. ना मान ना सम्मान कैसे-कैसे अखबार वाले... 
1- 2 लीटर पेट्रोल और एक-  एक कप चाय के लिए थानों के चक्कर लगाने वाले अखबार वाले .. कैसे-कैसे अखबार के लिए यह लोग घूम रहे हैं.. अखबार वालों के सारे कौम को बदनाम कर रहे हैं..थाना प्रभारी एक अखबार वाले को मान दे दे, सम्मान दे दे यह प्रयास होना चाहिए ..एक कप चाय के लिए जो अखबार वाले थाने  के चक्कर लगाते हैं, वह अपने उसूलों के साथ छल कर रहे हैं, अखबार वालों को  आजकल (दुर्भाग्य से ) ब्लैकमेलर के नाम से शहर में जाना जाने लगा है.. कथित सेटिंग के लिए अखबार वालों को जाना जाने लगा है.. एक लेख लिखें तो गुमराह अखबार वाले प्रकाशित नहीं करते हैं, विज्ञापन का डर या कहें लालच का...फिर कहां है हम सच्चे अखबार वाले ..   यह  मेरे इंदौर में  पत्रकारों का एक अनोखा रूप देखने को मिल रहा है.. ऐसे अखबार वाले बनो कि दुनिया कहने लगे कि यह है सही में अखबार वाले .. लेखक होने के नाते,अखबार वाले होने के नाते मिलने थाने पर गया.. मैं लेखक हूं  और चिंतन करता हूं, पहले से मौजूद मीडिया वाले ने जमकर हंसी उड़ाई और  कमेंट किया, हर बात को बीच-बीच में उन्होंने बोल कर मुझे चिंतन करने पर मजबूर किया, क्या वे थाना प्रभारी के प्रतिनिधि थे, जो हर बात में उनके बजाय वह बोल रहे थे..कैसे अखबार वाले ..कैसे पत्रकार -अखबार वाले,   कैसे कलम के धनी क्या ऐसे में लोगों में यह अखबार के नाम की प्रतिष्ठा बढ़ेगी ..अखबार वाले अखबार वाले ना हुए चापलूसी और जी हुजूरी  वाले अखबार वाले... प्रयास हो कि  जब थाने पर जाओ,तो प्रभारी कह सके कि आइये.. आम जन की आवाज बनने, आम जन की बात करने आते हैं थाने पर, तो वह है अखबार वाले ..  यह बनानी है इमेज ..अखबार वाले स्वाभिमान और सच्चाई का साथ देने वाले अखबार वाले बने और कलम के धनी बने.. तब समझे और दुनिया की नजरों में अखबार वालों की इमेज अखबार वालों के साथ बढ़े ..अच्छा होगा कि अखबार वाले न चाय पीने थानों पर जाए ना 2 लीटर पेट्रोल के लिए थानों पर जाएं,बल्कि आपके जाने पर थाना प्रभारी कह सके कि आप हैं सच्चे पत्रकार, सच्चे अखबार के प्रतिनिधि उस दिन समझो सही में आप है पत्रकार सही में हैं आप अखबार वाले  .. हो सकता है मेरा लिखा हुए सच से किसी को बुरा लगे लेकिन सच तो सच है .. हम अखबार वाले होकर अगर सच्चाई को स्वीकार नहीं करेंगे तो सच्चाई को स्वीकार करेगा कौन.?