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महिला स्वतंत्रता सेनानी तारा रानी

  • 23 Jun 2022

देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाने में कई सपूतों का विशेष योगदान है। कई वीरों ने आजाद भारत के सपने को साकार करने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, तो कई महान हस्तियों ने हर मोर्चे पर अंग्रेजी हुकूमत को एहसास दिलाया कि हम भारतीय अपने देश को संभाल सकते हैं। इसकी सुरक्षा, विकास और खुशहाली की जिम्मा उठा सकते हैं। इन्हीं भारतीयों में कई महिलाएं शामिल हैं। भारत की वीरांगनाएं जिन्होंने देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया। हालांकि इनमें से कई वीरांगनाओं के किस्से कहानियां भुला दिए गए। उन्हें भले ही वह पहचान न मिली हो, जो अमर शहीदों को मिली है। परिवार, पति और बच्चों को ही अपना संसार बना लेने वाली इन महिलाओं के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी गाथा हर किसी को पता होनी चाहिए। जानिये ऐसी ही महिला स्वतंत्रता सेनानी तारा रानी श्रीवास्तव के बारे में।
तारा रानी श्रीवास्तव कौन थीं
अंग्रेजों से भारत को आजादी दिलाने में तारा रानी श्रीवास्तव ने अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि भारतीय इतिहास में उनका नाम अधिक लोगों को नहीं पता होगा। तारा रानी श्रीवास्तव का जन्म बिहार के सारण जिले में हुआ था। कम उम्र में ही तारा रानी का विवाह फुलेंदू बाबू नाम के शख्स से हो गया था।
तारा रानी के पति
छोटी सी उम्र में ही तारा रानी स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गई थीं। उनके पति फुलेंदू बाबू स्वतंत्रता सेनानी थे और गांधी जी के अनुयायी थे। वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जुलूस निकालते थे। यहां से ही तारा रानी ने भी आजादी की लड़ाई में अपनी सहभागिता दर्ज करानी शुरू की। उस दौर में शादीशुदा महिलाओं पर बहुत पाबंदियां होती थीं लेकिन तारा रानी ने घर की चारदीवारी से निकल कर न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, बल्कि अन्य महिलाओं को भी इस संग्राम से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उनका साथ पति फुलेंदू ने दिया।
पति की मौत के बाद संग्राम तेज
फुलेंदू बाबू भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान विरोध प्रदर्शन और जुलूस निकालते थे। इसी दौरान 12 अगस्त 1942 को फुलेंदू बाबू ने सारन पुलिस थाने तक जुलूस निकाल रहे थे। उनकी थाने की छत से ब्रिटिश सरकार का झंडा उतार कर भारत का तिरंगा फहराने की योजना थी। हालांकि अंग्रेजो ने जुलूस पर लाठीचार्ज कर दिया और लोगों पर गोली चलाने लगें। तारा रानी के सामने फुलेंदू बाबू को अंग्रेजों ने गोली मार दी। पति सामने घायल पड़े थे, पर तारा कमजोर नहीं पड़ीं।
तारा के हाथ में तिरंगा था, पर उन्होंने पति को इस अवस्था में देखकर भी तिरंगा नहीं छोड़ा। साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर फुलेंदू बाबू को पट्टी बांधी। उन्हें एक सुरक्षित स्थान पर छोड़ा और प्रदर्शन जारी रखा। उन्होंने थाने पर पहुंचकर तिरंगा फहराया। हालांकि जब वह पति के पास वापस लौटी तब तक वह शहीद हो चुके थे। पति की शहादत को उन्होंने जाया न जाने दिया। उनके देहांत के बाद भी स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई को जारी रखा। आजादी की लो को जलाए रखा और अंत में तारा रानी व फुलेंदू बाबू समेत तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का संघर्ष रंग लाया। 15 अगस्त, 1947 को देश को आजादी मिल गई।
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