भारत की आजादी को 76 साल पूरे होने जा रहें है। इस जश्न से पूरा भारत झूम रहा है। 15 अगस्त, 1947 को हम सभी अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुए थे। ये आजादी हमें इतनी आसानी से नहीं मिली थी। भारत ने खून पसीना एक कर के अंग्रेजों से इस आजादी को पाया था। आजादी की इस लड़ाई में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल का नाम सर्वप्रथम शामिल किया जाता है। हालांकि, महिलाओं के बिना ये लड़ाई अधूरी थी। जी हां, भारत को आजादी दिलाने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। इस आंदोलनों में जहां पुरुषों का हिस्सा लेना आसान था, वहीं महिलाओं के लिए उतना ही मुश्किल। आंदोलन में भाग लेना मतलब समाज में बरसों से चली आ रही कई प्रथाओं को तोड़ने के समान था। इन सभी बेडियों को तोड़ते हुए सरोजिनी नायडू, भीकाजी कामा और सावित्री बाई फुले ने आजादी की इस लड़ाई में पुरूषों के कंधों से कंधा मिलाया था। यहीं नहीं उस समय जब महिलाओं को पर्दों के पीछे रखा जाता था, उस दौर में इन महिलाओं ने देश को आजाद करवाने में जमीन और आसमां को एक कर दिया था। आइए इन सभी बहादुर महिलाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
सरोजिनी नायडू ने की थी महिलाओं के हक की बात
कोकिला नाम से पुकारी जाने वाली सरोजिनी नायडू का नाम इतिहास में दर्ज किया गया है। यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनीं थी। जिसके बाद महिलाओं के हक की लड़ाई को लड़ना आसान होता चला गया था। सरोजिनी नायडू ने समाज की कुरीतियों के खिलाफ महिलाओं को जागरूक बनाया था। इसके साथ ही आजादी के आंदोलनों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। यह न केवल आजादी और राजनीति में आगे थी बल्कि लेखन में भी इनका गहरा रुझान था। सरोजिनी नायडू ने अपने जीवन काल में कई मशहूर किताबें भी लिखी थी।
विदेश में तिरंगा फहराने वाली पहली महिला थी भीकाजी कामा
भारतीय महिला स्वतंत्रता सेनानी भीकाजी कामा ने भी आजादी की इस लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। खास बात ये है कि, भीकाजी कामा विदेश में भारत का झंडा फहराने वाली पहली महिला थी। इसके बाद दूसरी महिलाओं में भी इनका असर देखा जाने लगा और आंदोंलन में महिलाओं की संख्याओं में इजाफा हुआ। भारतीय महिला स्वतंत्रता सेनानी भीकाजी कामा ने 33 वर्ष बीमारी के चलते भारत से दूर रहीं। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और आजादी को लेकर उनका सपना कायम रहा।
देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले
सावित्रीबाई फुले का नाम भला कौन नहीं जानता? यह देश की पहली महिला शिक्षिका बनी थी। इन्होंने ही समाज में महिलाओं के लिए शिक्षा की ज्योति जलाई थी। भारतीय स्त्री आंदोलन की यात्रा में सावित्री बाई फुले ने अहम भूमिका निभाई। इसके बाद समाज में शिक्षा को लेकर भी कई लड़ाईयां की। साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश के सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना इन्होंने ने ही की थी।
8 साल की उम्र में शुरू की थी आजादी की लड़ाई
कम उम्र में आजादी की लड़ाई लड़ने वाली महिला का नाम उषा मेहता था। यह आजादी की लड़ाई में सबसे कम उम्र की प्रतिभागियों में से एक थी। उस दौरान इनकी आयु महज 8 साल की थी। उषा मेहता ने साइमन गो बैक विरोध में भी भाग लिया। यही नहीं उन्होंने पढ़ाई छोड़ने के बाद खुद को पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया था।
साभार अमर उजाला
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यह महिलाएं जिन्होंने आजादी की जंग में निभाई थी अहम भूमिका
- 11 Aug 2023