गोस्वामीजी कहते हैं कि मेरी विनय पत्रिका पर आप सही (हस्ताक्षर )कर दो ...और फिर यदि आपको पूछना है कि "मैंने तुलसी की विनय पत्रिका में उसके आग्रह पर सही कर दी है... लेकिन ये सब ठीक है ?"....ये यदि आपको पूछना है तो पांच को पूछो.....
हम भी तो दीन हैं ....हमारी भी कोई विनय पत्रिका है.... हम भी तो कहीं विनय प्रस्तुत करते हैं... जहां करने योग्य स्थान मिल जाए वहां हमारा विनय होता है .....लेकिन संसारी जीव होने के नाते विनय कर लिया जाए ...और वो स्वीकार कर ले ... आप विनय करें ना कि प्रभु हमें ये जरूरत है ...हमारा विनय सुनियो ... तो परमात्मा ...आप बोलें इससे पहले वो दे देता है... यदि श्रद्धा है तो ....
तो फिर भगवान क्यों आते हैं ?....भगवान इसलिए आते हैं कि उसने जो मांगा था वो पहले मैंने दे दिया था... मेरा अंतर्यामीपना ठीक है कि नहीं वो चेक करने आता है.... कि मैंने उनके अंतः करण की बात सुन ली... ये ऑलरेडी मैंने दे दिया था ....वो देखने को आता है... हम कहते हैं भगवान दर्शन देने आए .....दया ऑलरेडी कर दी ....देखने के लिए प्रभु आते हैं....
फिर भी हम जीव हैं ...तो पाँच को पूछना ...इसमें सीता को पूछा ....भरतजी को पूछा... लक्ष्मण जी को पूछा... शत्रुघ्न महाराज को ...और हनुमान जी को....
हमारे पास इन 5 में से कोई नहीं है ....विचार के रूप में है.... या तो मूर्ति के... आकार के रूप में है.... प्रत्यक्ष तो कोई नहीं है ....
तो मैं भी आपको इतना ही कह कर विदा लूँ कि इन पांचों से पूछ लीजिए... लेकिन ये है नहीं ....कैसे पूछें ?....
तो सीता का अर्थ शंकराचार्य भगवान ने शांति किया है... तुलसीदास जी ने उसे भक्ति भी कहा है ...माया भी कहा है ...शची महाराणी भी कहा है... और मनु शतरूपा को दर्शन जब दिया राम सीता के रूप में... तब आदि शक्ति के रूप में सीता को ....
मेरे पूरे 170 देशों के सभी श्रोता भाई बहन ...हमारी विनय पत्रिका हमने की... ठाकुर ने मानो सही कर दी... और संसारी जीव के कारण यदि हम पूछे बिना ना रहे.... तो सीता को पूछो ...शक्ति हमारे सामने तो नहीं ...लेकिन तात्विक अर्थ में सीता है शक्ति ....अपनी औकात को पूछो ....कहीं हम हद से ज्यादा तो विनय नहीं कर रहे हैं ?... हद से ज्यादा तो मांग नहीं ?.... हमारा पात्र छोटा है और मांग रहे कुछ और....है एक गगरी... मांग रहे हैं सागर.....
अपनी औकात को पूछो.... और ये आना चाहिए कि बस... इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए... हम निष्काम हो पाएंगे ...हम निर्लोभी हो पाएंगे ...हम द्वेषमुक्त हो पायेंगे ...
कम से कम इतना करें... हमें तू निरंतर याद रहे... तू भूल जाए तो भी हमें तू याद रहे ....अपनी शक्ति से पूछा कि मैं कितनी मात्रा में लायक हूँ ?...ये तो दयालु है... सही कर देगा.... लेकिन कम से कम सीता को पूछें ... हमारी भीतरी अवस्था को पूछें ....
दूसरा ...भरत...जो नखशिख राम का प्रेमी है.. जो साधु है उसको पूछें ... कि सही कराने में हमने जल्दी तो नहीं कर दी ?...जबरदस्ती तो सही नहीं करवा दी ?...ज़बरदस्ती तो हाँ नहीं करवा दी ?....आप हमें राय दो....
फिर लक्ष्मण ....लक्ष्मण को पूछने का तलगाजरड़ी अर्थ है कोई जागृति व्यक्ति को पूछो ...जो परमार्थ के कारण जागता हो ....स्वार्थ के लिए तो पूरी दुनिया जागती है... कोई जागरूक को पूछो....
चौथा ....सब कुछ जानते हुए जो चुप रहता है महापुरुष को पूछो ...शत्रुघ्न ....
ये बात और है कि वो खामोश खड़े रहते हैं ...
फिर भी जो बड़े होते हैं वो बड़े ही रहते हैं ...
वृक्ष बोलते नहीं ...फल ले जाओ... छांव में बैठ जाओ... मुझे भी पता नहीं चले कि मैंने उपकार किया है... फल लेना हो तो मुझे पत्थर मारकर भी ले जाओ.....
हम ऐसे मौन भजनानंदी पुरुष को पूछें ....
और पांचवा ...मन...कर्म...वचन से जो केवल राम काज के लिए ...शिवजी से बदलकर हनुमान के रूप में दासत्व कुबूल करके आया है... ऐसे भगवान के कोई परम किंकर को पूछें ....
चिंतन और संवाद
।। राम कथा ।। मानस विनय पत्रिका ।।
- 29 Jan 2022