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बाबा पंडित

रेवती नक्षत्र में नवरात्रि का प्रारंभ देगा सुख-समृद्धि और व्यापार में वृद्धि  2 अप्रैल 2022

  • 01 Apr 2022

इस नवरात्री में करे दुर्गा शप्तशती का पाठ और पाए संमृद्धि 
चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ 2 अप्रैल 2022 शनिवार को रेवती नक्षत्र में हो रहा है। इस नक्षत्र के स्वामी बुध हैं जो व्यापार-व्यवसाय में वृद्धि और सुख-समृद्धि प्रदान करेंगे। इसलिए नवरात्रि में भूमि, भवन, संपत्ति, वाहन आदि की खरीदी करना शुभ रहेगा। बुध का नक्षत्र ज्ञान, बुद्धि, विवेक में भी वृद्धि करेगा। अत: नवरात्रि पूजन विशेष फलदायी रहेगा। इस नक्षत्र में घट स्थापना करना सफलता और सिद्धिदायक रहेगा।
घट स्थापना के मुहूर्त
चौघड़िया के अनुसार शुभ- प्रात: 7.52 से 9.25
 चर- दोप. 12.30 से 2.03 
लाभ- सायं 6.41 से 8.08 
अभिजित मुहूर्त- दोप. 12.06 से 12.55
लग्न अनुसार मुहूर्त वृषभ- प्रात: 8.43 से 10.41 
सिंह- दोप. 3.11 से 5.21
नवरात्र में कैसे करें संपूर्ण दुर्गा सप्तशती पाठ
श्री दुर्गा सप्तशती
श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ करने का अलग विधान है। कुछ अध्यायों में उच्च स्वर, कुछ में मंद और कुछ में शांत मुद्रा में बैठकर पाठ करना श्रेष्ठ माना गया है। जैसे कीलक मंत्र को शांत मुद्रा में बैठकर मानसिक पाठ करना श्रेष्ठ है। देवी कवच उच्च स्वर में और श्रीअर्गला स्तोत्र का प्रारम्भ उच्च स्वर और समापन शांत मुद्रा से करना चाहिए। देवी भगवती के कुछ मंत्र यंत्र, मंत्र और तंत्र क्रिया के हैं। संपूर्ण दुर्गा सप्तशती स्वर विज्ञान का एक हिस्सा है।
वाकार विधि: 
प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय, तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है। 
संपुट पाठ विधि: 
किसी विशेष प्रयोजन हेतु विशेष मंत्र से एक बार ऊपर तथा एक नीचे बांधना उदाहरण हेतु संपुट मंत्र मूलमंत्र-,  संपुट मंत्र फिर मूलमंत्र अंत में पुनः संपुट मंत्र आदि इस विधि में समय अधिक लगता है। लेकिन यह अतिफलदायी है। 
अच्छा यह होगा कि आप संपुट के रूप में अर्गला स्तोत्र का कोई मंत्र ले लीजिए। या कोई बीज मंत्र जैसे ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं दुर्गायै नम: ले लें या ऊं दुर्गायै नम: से भी पाठ कर सकते हैं। 
नवरात्र पूजा विधि
सर्वप्रथम- देवी भगवती को प्रतिष्ठापित करें। कलश स्थापना करें। दीप प्रज्ज्जवलन करें। ( अखंड ज्योति जलाएं यदि आप जलाते हों या जलाना चाहते हों)
ध्यान- सर्वप्रथम अपने गुरू का ध्यान करिए। उसके बाद गणपति, शंकर जी, भगवान विष्णु, हनुमान जी और नवग्रह का।
पाठ विधि
संकल्प- श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले भगवान गणपति, शंकर जी का ध्यान करिए। उसके बाद हाथ में जौ, चावल और दक्षिणा रखकर देवी भगवती का ध्यान करिए और संकल्प लीजिए...हे भगवती मैं.....( अमुक नाम)....सपरिवार...( अपने परिवार के नाम ले लीजिए...)...गोत्र.( अमुक गोत्र)....स्थान ( जहां रह रहे हैं)... पूरी निष्ठा, समर्पण और भक्ति के साथ आपका ध्यान कर रहा हूं। हे भगवती आप हमारे घर में आगमन करिए और हमारी इस मनोकामना... ( मनोकामना बोलें लेकिन मन ही मन) को पूरा करिए। श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ, जप ( माला का उतना ही संकल्प करें जितनी नौ दिन कर सकें) और यज्ञादि को मेरे स्वीकार करिए। इसके बाद धूप, दीप, नैवेज्ञ के साथ भगवती की पूजा प्रारम्भ करें।
अन्य महत्वपूर्ण नियम :- 
दुर्गा शप्तसती का पाठ शुरू करने के पहले प्रथम पूज्य गणेश की पूजा करनी चाहिए।  यदि घर में कलश स्थापन किया है तो पहले कलश का पूजन फिर नवग्रह की पूजा और फिर अखंड दीप का पूजन करना चाहिए।  
दुर्गा शप्तसती के पाठ में अर्गला,  कीलक स्त्रोत और कवच के पाठ से पहले शापोध्दार का पाठ करना आवश्यक है।  दुर्गा सप्तसती के सभी मंत्र ब्रह्मा , वसिष्ठ और विश्वामित्र के द्वारा शापित किये गए है।  शापोद्धार के बिना जाप का फल प्राप्तः नहीं होता है।  
दुर्गा सप्तसती का पाठ करने से पहले और बाद में नवारण मंत्र " ॐ ऐ ह्री क्लीं चामुण्डाय विच्चे " का पाठ करना परम आवशयक है।  
इस मंत्र में लक्ष्मी काली और सरस्वती के बीज मंत्र का संग्रह है।  
दुर्गा सप्तसती पाठ के आरंभ और अंत में क्षमा प्रार्थना का पाठ अवश्य करना चाहिए।  
श्री दुर्गा सप्तसती ग्रन्थ में सात सो श्लोक है।  प्रथम चरित्र में पहला अध्याय , मध्यम चरित में दूसरा तीसरा और चौथा अध्याय और उत्तम चरित में शेष अध्याय रखे गए है।  
दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय सिले हुए वस्त धारण नहीं करने चाहिए। पुरुषो को धोती और स्त्रियों को साड़ी धारण करनी चाहिए।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय एकाग्रचित होना आवश्यक होता है। इसलिए पाठ करते समय आलस न करें और जम्हाई ने लें। मां दुर्गा में ध्यान लगाने का प्रयास करें। पाठ करते समय बीच में किसी और से बात न करें।
अगर पाठ करते समय आपका हाथ पैर से स्पर्श हो जाता है, तो सबसे पहले जल से हाथों को धाएं, उसके बाद ही पुस्तक को स्पर्श करें। क्योंकि दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय शुद्धता का ध्यान रखना बहुत आवश्यक होता है।
पंडित डॉ. मनीष शर्मा 
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