चंबा। टोक्यो ओलंपिक में पुरुष और महिला हॉकी टीम ने इतिहास रच दिया है। पुरुष टीम 49 साल बाद सेमीफाइनल में पहुंची है तो महिला टीम ने आॅस्ट्रेलिया को हराकर पहली बार सेमीफाइनल का टिकट पाया है।
देश के लिए यह गर्व के पल हैं। लेकिन एक असलियत यह भी है कि इस खेल में खून-पसीना बहाने वाले राष्ट्रीय स्तर के कई खिलाड़ी आज भी उपेक्षित हैं। कोई मछली तल रहा है तो कोई ढाबा चलाकर गुजर-बसर करने को मजबूर है।
दिग्गज हॉकी खिलाड़ी धनराज पिल्लै और परगट सिंह के खिलाफ खेल चुके हिमाचल प्रदेश के चंबा के विश्वजीत मेहरा गुमनामी के अंधेरे में खो गए हैं। इनके भाई संजीव मेहरा भी नेशनल खिलाड़ी रह चुके हैं। दोनों भाई मछली बेचने को मजबूर हैं। एक और खिलाड़ी हैं केवल मेहरा। यह ढाबा चला रहे हैं।
विश्वजीत मेहरा का कहना है कि वह पांच बार नेशनल टीम में रहे। दिल्ली, लखनऊ, मुंबई, मद्रास और जम्मू में 1987 से लेकर 1991 तक टीम में शामिल रहे। इस दौरान सबसे खास पल धनराज पिल्ले और परगट सिंह के खिलाफ खेलने का रहा।
स्टेट चैंपियन रहे केवल मेहरा ने बताया कि टोक्यो ओलंपिक में भारतीय टीम का प्रदर्शन देखकर खुशी का ठिकाना नहीं है। ऐसा ही उत्साह उन्हें 1983 में खेले गए एक मैच में दिल्ली के खिलाफ आया था।
इस मैच में दिल्ली को हराया था। संजीव मेहरा का कहना है कि हॉकी का सबसे पहला हॉस्टल चंबा में वर्ष 1986-87 में खुला था। उन्होंने बताया कि 1988 में वह नेशनल टीम में रहे। फिलहाल मछली बेचकर गुजारा कर रहे हैं।
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