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लोकतंत्र की जननी भारत

  • 08 Aug 2023

आमतौर पर अन्य जगहों पर जब लोकतंत्र की चर्चा होती है तो ज्यादातर चुनाव, चुनाव की प्रक्रिया, चुने हुए प्रतिनिधि, उनकी संरचना, शासन-प्रशासन, लोकतंत्र की परिभाषा इन्हीं चीजों के आसपास रहती है। इस प्रकार की व्यवस्था पर अधिक बल देने को ही ज्यादातर स्थानों पर लोकतंत्र कहते हैं लेकिन भारत में लोकतंत्र एक संस्कार है। भारत के लिए लोकतंत्र जीवन मूल्य है, जीवन पद्धति है, राष्ट्र जीवन की आत्मा है। भारत का लोकतंत्र, सदियों के अनुभव से विकसित हुई व्यवस्था है। भारत के लिए लोकतंत्र में, जीवन मंत्र भी है, जीवन तत्व भी है और साथ ही व्यवस्था का तंत्र भी है। समय-समय पर इसमें व्यवस्थाएं बदलती रहीं, प्रक्रियाएं बदलती रहीं लेकिन आत्मा लोकतंत्र ही रही। जब हम विश्वास के साथ अपने लोकतांत्रिक इतिहास का गौरव गान करते हैं तो यह अनुभूति होती है कि भारत ही लोकतंत्र की जननी है। भारत के लोकतंत्र में समाहित शक्ति ही देश के विकास को नई ऊर्जा दे रही है, देशवासियों को नया विश्वास दे रही है। दुनिया के अनेक देशों में जहां लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को लेकर अलग स्थिति बन रही है, वहीं भारत में लोकतंत्र नित्य नूतन हो रहा है। हाल के बरसों में हमने देखा है कि कई लोकतांत्रिक देशों में अब वोटर टर्न आउट लगातार घट रहा है। इसके विपरीत भारत में हम हर चुनाव के साथ वोटर टर्नआउट को बढ़ते हुए देख रहे हैं। इसमें भी महिलाओं और युवाओं की भागीदारी निरंतर बढ़ती जा रही है। भारत में लोकतंत्र, हमेशा से ही सुशासन के साथ ही मतभेदों और विरोधाभासों को सुलझाने का महत्वपूर्ण माध्यम भी रहा है। अलग-अलग विचार, दृष्टिकोण, यह सब एक जीवंत लोकतंत्र को सशक्त करते हैं। मतभेद कभी मनभेद न हो, इसी लक्ष्य को लेकर भारतीय लोकतंत्र आगे बढ़ा है।
राष्ट्र प्रथम की भावना से हर निर्णय
गुरु नानक देव ने भी कहा है- जब लगु दुनिआ रहीए नानक । किछु सुनिए, किछु कहिए ।। यानी जब तक संसार रहे तब तक संवाद चलते रहना चाहिए। कुछ कहना और कुछ सुनना, यही तो संवाद का प्राण है। यही लोकतंत्र की आत्मा है। नीतियों में अंतर, राजनीति में भिन्नता हो सकती है लेकिन हम जन सेवा के लिए हैं, इस अंतिम लक्ष्य में कोई मतभेद नहीं होना चाहिए। वाद-संवाद संसद के भीतर हो या संसद के बाहर, राष्ट्र सेवा का संकल्प, राष्ट्रहित के प्रति समर्पण लगातार झलकना चाहिए। आज जब नए संसद भवन का संकल्प साकार हुआ है तो सबको यह याद रखना होगा कि वो लोकतंत्र जो संसद भवन के अस्तित्व का आधार है, उसके प्रति आशावाद को जगाए रखना सभी का दायित्व है। संसद पहुंचा हर प्रतिनिधि जवाबदेह है। यह जवाबदेही जनता के प्रति भी है और संविधान के प्रति भी है। हर फैसला राष्ट्र प्रथम की भावना से होना चाहिए, हर फैसले में राष्ट्रहित सर्वोपरि रहना चाहिए। राष्ट्रीय संकल्पों की सिद्धि के लिए एक स्वर में, एक आवाज में खड़े हों, ये बहुत जरूरी है।
एक 'मंदिर' लोकतंत्र का
हमारे यहां जब मंदिर के भवन का निर्माण होता है तो शुरू । कारीगर, में उसका आधार सिर्फ ईंट-पत्थर ही होता शिल्पकार, सभी के परिश्रम से उस भवन का निर्माण पूरा होता है लेकिन वो भवन, एक मंदिर तब बनता है, उसमें पूर्णता तब आती है जब उसमें प्राण-प्रतिष्ठा होती है। प्राण-प्रतिष्ठा होने तक वो सिर्फ एक इमारत ही रहता है। नया संसद भवन भी तब तक एक इमारत ही रहेगा जब तक उसकी प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होगी लेकिन ये प्राण प्रतिष्ठा किसी एक मूर्ति की नहीं होगी। लोकतंत्र के इस मंदिर में इसका कोई विधि-विधान भी नहीं है। इस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा करेंगे इसमें चुनकर आने वाले जन-प्रतिनिधि। उनका समर्पण, उनका सेवा भाव इस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा करेगा। उनका आचार-विचार- व्यवहार, इस लोकतंत्र के मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा करेगा। भारत की एकता-अखंडता को लेकर किए गए उनके प्रयास, इस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की ऊर्जा बनेंगे। जब एक-एक जनप्रतिनिधि, अपना ज्ञान, कौशल, बुद्धि, शिक्षा, अनुभव पूर्ण रूप से यहां निचोड़ देगा, उसी का अभिषेक करेगा, तब इस नए संसद भवन की प्राण-प्रतिष्ठा होगी। प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, “जब हम आज संकल्प लेकर देशहित को सर्वोपरि रखते हुए काम करेंगे तो देश का वर्तमान ही नहीं बल्कि देश का भविष्य भी बेहतर बनाएंगे। आत्मनिर्भर भारत का निर्माण, समृद्ध भारत का निर्माण, अब रुकने वाला नहीं है, कोई रोक ही नहीं सकता । "
निश्चित रूप से शिलान्यास से उद्घाटन तक, संसद का नया भवन साकार हुआ है क्योंकि आज देश का विचार और देश का व्यवहार दोनों गुलामी की मानसिकता से मुक्त रहे हैं। यही मुक्ति राष्ट्र को विकसित भारत के लक्ष्य तक लेकर जाएगी। इस ऐतिहासिक पल का साक्षी बना है विविधता में एकता को समेटे 140 करोड़ की विशाल आबादी वाला नया भारत। ऐसे में यह हर नागरिक का भी कर्तव्य है कि सदैव उनका भाव- भारत सर्वोपरि हो। जिसमें केवल भारत की उन्नति और विकास को ही अपनी आराधना बनाने का संकल्प हो। आजाद भारत को मिला अपना संसद भवन एक नया आदर्श प्रस्तुत कर रहा है तो लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता को मजबूती प्रदान करते हुए स्वर्णिम भारत के संकल्प की ओर बढ़ चला है। •
पारंपरिक कलाएं, समुद्र मंथन का चित्रण
नए संसद भवन में एक हजार से अधिक शिल्पकारों ने इसे सजाने का काम किया है। यहां पारंपरिक कला को सहेजने और पेश करने का काम किया गया है। भवन की तीनों दीर्घाएं जहां खुलती हैं, वहां दीवार पर मथुरा की सांझी कला, मधुबनी सहित अलग-अलग जगह की लोक कलाओं को उकेरा गया है। अखंड भारत, अशोक चक्र, महान संतों को जगह दी गई है। संसद के गलियारे में एक जगह चाणक्य को उकेरा गया है तो एक गोलाकार कृति में सरदार वल्लभ भाई पटेल और डॉ. भीमराव अम्बेडकर को रखा गया है। अमृतकाल में राष्ट्र को समर्पित नए संसद भवन की दीवार पर समुद्र मंथन को प्रदर्शित किया गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसे लेकर एक ट्वीट किया 'समुद्र मंथन से नई ऊंचाइयां पाएगा राष्ट्र'। पीएम मोदी ने इस दिव्य और भव्य संसद भवन का वीडियो शेयर कर उसे अपनी आवाज देने और #MyParliamentMyPride का आग्रह किया था जिस पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, अभिनेता रजनीकांत, अनुपम खेर, अक्षय कुमार, शाहरुख खान, कबीर बेदी सहित कई लोगों ने अपनी आवाज में नए भवन की दिव्यता को बताया है।
पीएम मोदी ने नए संसद भवन के उद्घाटन अवसर पर एक विशेष स्मारक डाक टिकट और 75 रुपये का सिक्का जारी किया।
संकलनकर्ता
एल एन उग्र  
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