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संवाद और परिचर्चा

वरिष्ठ साहित्यकार श्री राजेंद्र पांडे "तपन" से वार्तालाप के मुख्य अंश...

  • 14 Feb 2022

DGR@ एल एन उग्र
कोरोना काल में साहित्य की स्थिति..
कोरोना काल में समय की कमी नहीं थी लोगों को अध्ययन करना साहित्य का सृजन लेखन पाठन किसी समय अधिक लेखन हुआ है साहित्य  में अपनी रुचि को बढ़ाया, इसी समय लेखन का काम अधिक हुआ है तथा साहित्य पुस्तकों का प्रकाशन भी अधिक हुआ है  l
साहित्य के प्रति आपका रुझान... 
पारिवारिक आध्यात्मिक परिवेश के कारण व माता-पिता एवं गुरुओं के आशीर्वाद से  मेरे मन में अध्ययन के साथ-साथ प्राइमरी शिक्षा में अध्ययन करते हुए ही सरस्वती की कृपा से सर्जन व लेखन के प्रति मेरा रुझान बढ़ा l
शहर को साहित्य के माध्यम से पहचान दिलाने में आपकी भूमिका ...
किसी भी कार्य को क्रियान्वित करने के लिए संगठन की आवश्यकता महसूस की  एवं हमारे वरिष्ठ साहित्यकार एवं आदरणीय श्री राजकुमार जी वर्मा साहब ,श्री मोहन प्रताप जी मोहन, टी एल शर्मा ,श्रीमती आशा जाखड़ व अन्य साथियों के माध्यम से संस्था "काव्य रस "का गठन किया ।
साहित्यकारों को हमारी संस्था "काव्य रस " द्वारा छुपी हुई साहित्य प्रतिभाओं को श्रजन  के प्रति, उनकी लगन को निखारना है l
मेरे द्वारा विद्यालय की स्मारिका का संपादन एवं प्रकाशन किया है, कुछ साहित्यकारों को मिलाकर हम 38 का भी हमने प्रकाशन किया है जिसमें साहित्यकारों के अलावा बच्चे वृद्ध जवान साहित्यकारों  को भी इसमें उचित स्थान दिया है l         
मेरे स्वयं के द्वारा काव्य संग्रह धुआं में सामाजिक राष्ट्रीय  शिक्षक राजनीति जीवन दर्शन होली दिवाली आदि विषयों पर उत्कृष्ट कविताएं संकलित कर प्रकाशित की है l
मालवा में  साहित्य की आज की स्थिति ..
मालवा साहित्य की राजधानी रहा है उत्तम कोटि का साहित्य का सृजन हुआ है, परंतु शनै शनै इसमें कमी  होती गई,क्योंकि साहित्य की गंभीरता पर ध्यान ना दे कर तूकाबंदी,चुटकुले, मसखरा पन व चाटुकारिता ने ली इससे साहित्य के स्तर में उत्थान की अपेक्षा कमी आई है कथित साहित्य पुजारियों से कोई नए परिवर्तन की उम्मीद दिखाई नजर नहीं आ रही है l
पूर्व व वर्तमान में भी स्वस्थ साहित्य की रचना होती रही है,पर उनको पढ़ने के लिए प्रेरणा देने वालों की कमी का अनुभव आज हो रहा है, क्योंकि वर्तमान समय में फेसबुक टीवी व अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों ने पाठकों को पढ़ने से दूर करता जा रहा है, वह साहित्यिक पुस्तकों के पन्ने पलटने की बजाय मोबाइल को ही पुस्तक मान उनके अनुसार दी जा रही जानकारी को पूर्ण मान रहा है जबकि हमारे साहित्य और उसकी जानकारी  में काफी अंतर नजर आता है l
साहित्य सरल सहज भाषा में हो जो आम जन को समझ में आ सके तभी समाज में परिवर्तन की भावना का जन्म होगा l
साहित्य जगत में गुटबाजी ...!
जिस प्रकार मनुष्य के स्वभाव में भी अंतर और विचारधारा अलग अलग होती है, आदि काल में यह अनुभव तो किया जा रहा है,वक्त परंतु वर्तमान समय में इसका पुट अधिक नजर आने लगा है, एक ही विधा के होने के बाद भी अपने को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की होड़ में वह अपने अलग-अलग समूहों में विभाजित हो गए हैं, जो साहित्य की धारा में अवरोध पैदा करने में उनका विशेष योगदान होता है l