"शब्दरंग"जाने क्या था , जाने क्या है
जो कुछ मुझसे छूट रहा है ,
यादें कंकर फेंक रही हैं
दिल भी मानो टूट रहा है ।
ना ही अंदर जाती है
ना ही बाहर आती है ,
जीवन के तानों बनो में
साँसों का दामन छूट रहा है ,
दिल भी मानो टूट रहा हैं ।
उड़ते हैं कभी गिर जाते हैं
पंख ये मेरे कट जाते हैं ,
किसको कितना पकड़ूँ मैं भी
ख्वाबो का दामन छूट रहा है ,
दिल भी मानो टूट रहा है ।
खोज रही हूं सुखों को
टटोल रही हूं दुखो को ,
किसकी कितनी गिनती करती
सेहरा में सब छूट रहा है ,
दिल भी मानो टूट रहा है ।
("मीनाक्षी पाठक* की social wall से साभार )
विविध क्षेत्र
"शब्दरंग"
- 30 Dec 2023