पहले खूब मिलती थी राजकीय मछली, अब विलुप्ति की कगार पर
सीहोर। 'टाइगर ऑफ वाटर' कही जाने वाली प्रदेश की राजकीय मछली 'महाशीरÓ के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। कभी महाशीर नर्मदा की शान हुआ करती थी। बड़ी तादाद में पानी में नजर आ जाया करती थीं, लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि यह मछली कभी-कभार ही देखने को मिलती है। नदी तंत्र में बेतहाशा अवैध खनन और इसके संरक्षण पर ध्यान नहीं देने के चलते यह मछली अब विलुप्ति की कगार पर है। इसके अस्तित्व पर भी संकट मंडरा रहा है।
जिले के नर्मदा क्षेत्र बुधनी और नसरुल्लागंज में बीते कुछ वर्षों से रेत खनन काफी बढ़ गया है। तटीय क्षेत्रों में अनेक स्थानों पर पक्के निर्माण भी हुए। मछुआरों का मानना है कि इसी का असर महाशीर पर पड़ा है। नर्मदा की जलधारा दूषित होने और मछलियों के प्राकृतिक रहवास से छेड़छाड़ के कारण इनकी संख्या लगातार घटती गई। महाशीर मछलियां (रूड्डद्धह्यद्गद्गह्म् स्नद्बह्यद्ध) जलीय जैव विविधता संतुलन बनाने की सबसे अधिक क्षमता रखती है।
2011 में संरक्षण प्रदान किया गया
26 सितंबर 2011 में महाशीर मछली को राज्य में संरक्षण प्रदान किया गया। तब ये नर्मदा में बहुतायत में पाई जाती थीं। आंकड़ों के मुताबिक उस वक्त नर्मदा में मौजूद कुल मछलियों का करीब 20त्न महाशीर थीं। वर्ष 2012 में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (ढ्ढष्टहृ) द्वारा विलुप्त घोषित किया गया है। अब हालात ये हैं कि इन्हें देखना भी मुश्किल है। इन मछलियों की खासियत ये है कि ये पत्थरों में लगने वाली काई और पानी की गंदगी खाकर नदी को साफ रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।
धारा कम होने से घटी संख्या
रायकवार मछुआ सहकारी समिति के सदस्य मिलिन्द रैकवार लंबे समय से मछली व्यवसाय से जुड़े हैं। वह कहते हैं कि वर्ष 2010 तक सीहोर के मछली बाजारों में महाशीर देखने को मिल जाती थी, लेकिन अब दो तीन महीने में एकाध मछली बाजारों में आ जाए तो बड़ी बात है। नर्मदा की धारा कम होने और नदी में लगातार खनन के कारण ऐसे हालात बन रहे हैं। बिगड़ते पर्यावरण और नर्मदा नदी के प्रवाह में आई कमी के कारण महाशीर को प्रजनन के लिए पर्याप्त माहौल नहीं मिल सका।
इसी वजह से महाशीर की संख्या लगातार कम होती गई। दूषित पानी में यह जिंदा नहीं रह पाती। महाशीर मछली प्रवाहित स्वच्छ जल धाराओं में ही प्रजनन करती है। नर्मदा में लगातार होने वाला रेत खनन, नदियों में मछली के अवैध शिकार, मछलियों को पकडऩे के लिए विस्फोटकों का प्रयोग और बनने वाले बाँध भी महाशीर की संख्या घटने की एक वजह है।
महाशीर को संरक्षण की दरकार
महाशीर को राजकीय मछली का दर्जा प्राप्त है। बावजूद इसके संरक्षण को लेकर जिला प्रशासन और मत्स्य विभाग द्वारा कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए। एक दशक पूर्व तक भी इन मछलियों की अच्छी खासी तादाद थी, लेकिन इसके संरक्षण और संवर्धन को लेकर कभी ध्यान नहीं दिया गया। मत्स्य विभाग के पास हेचरी और तालाब हैं, जहां अन्य मछलियों के बीज तैयार किए जाते हैं, लेकिन महाशीर के प्रजनन और प्राकृतिक रहवासों के संरक्षण को लेकर कोई कार्ययोजना तैयार नहीं की गई।
करंट लगाकर मछलियों को मार रहे
सहायक मत्स्य अधिकारी राकेश पाठक इस संबंध में कहते हैं कि महाशीर संरक्षण के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। कुछ मछुआरे बारुद और करंट लगाकर इनका शिकार कर लेते हैं, हम उन्हें रोकते हैं, कार्रवाई भी करते हैं। समय-समय पर जागरूकता शिविर भी लगाते हैं। मत्स्य उद्योग अधिकारी सीहोर भारत सिंह मीना कहते हैं कि महाशीर के संरक्षण के लिए जिले में कोई योजना नहीं है, यदि जिले में ब्रीडिंग कराई जाए तो इसकी संख्या बढ़ सकती है।
सीहोर
संकट में नर्मदा की 'टाइगर'
- 08 Feb 2022