समाज को सुंदर बनाना है तो स्त्रियों को आज़ादी और सुरक्षा दो. .स्त्री को बंद कर रखा है घरों में, कठघरों में।
और जब स्त्रियाँ कठघरों में बंद हो जाती हैं और समाज केवल पुरुषों का रह जाता है तो समाज में एक तरह की कठोरता हो जाती है- एक तरह की पुरुषता।क्योंकि पुरुष पुरुष है, कठोर है। तब समाज में एक तरह की सौम्यता खो जाती है।
तुमने देखा, दस पुरुष बैठे हों और एक स्त्री आ जाये, उसके आते ही एक सौम्यता आ जाती है।उसकी मौजूदगी एक तरलता ले आती है।
उसकी मौजूदगी से ही अगर गाली- गलौच चल रही थी तो बंद हो जाती है।अगर लोग कुछ भी ऊल-जलुल बातें कर रहे थे तो बदल देते हैं।
उसकी मौजूदगी एक रूपांतरण लाती है।
जिस समाज में स्त्रियां घरों में बंद हो जाती हैं...वह समाज कठोर हो जाता है, जंगली हो जाता है। उन्हें घरों के बाहर लाना है। उन्हें समाज में प्रवेश दिलाना है। उन्हें उनका अधिकार मिलना चाहिए।
उन्हें उनकी समानता मिलनी चाहिए।
चिंतन और संवाद
OSHOकहिन : समाज को सुंदर बनाना है तो स्त्रियों को आज़ादी और सुरक्षा दो
- 23 Aug 2020