भारतीय सामाजिक व्यवस्था में व्यक्तिगत सोच का प्रभाव निश्चित ही होता है... व्यक्ति_ व्यक्ति की सोच की समानता के बढ़ने से... सामाजिक आकार में वृद्धि होना तय है... प्रत्येक कोई व्यक्ति की सोच अलग-अलग होती है... अलग-अलग सोच में से... जब समान विचार वाले लोग मिलते हैं... तो संगठन आकार लेता है... और संगठनों के आकार लेने से... समाज का आधार बनता है... एक मजबूत समाज के लिए... समान विचारों का होना अनिवार्य है... समाज ही धार्मिक आधारों के लिए... अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है... आज हर और समाज असंगठित होता नजर आ रहा है...? जब समाज कमजोर होगा... तो देश की सामाजिक व्यवस्था भी कमजोर होगी... चाहे जो भी धर्म हो... हर धर्म का संचालन... समाज का संगठन ही करता आ रहा है।
इसलिए जब विकसित विचारधाराओं के आधार पर संगठन होगा... तो संगठन नए विचारों के साथ... धार्मिक व्यवस्थाओं के लिए... देश की समस्त व्यवस्थाओं के लिए... महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा... । एक मजबूत धर्म स्थापना तथा उसका संचालन... सुचारू रूप से हो सकेगा...। धर्म चाहे कोई भी हो... सभी के प्रति समान भाव और सम्मान होना अनिवार्य है... खासकर भारत जैसे देश के लिए... सर्वधर्म समभाव की भावना ही... भारतीय समाज और धर्म के लिए आधार है... आज समाज के मजबूत होने के लिए... एक सशक्त समाज विकास की भावना... अनिवार्य है ...तभी विकास होगा... और एक सामाजिक सशक्तिकरण की मान्यता पूर्ण हो सकेगी... यही समय की आवश्यकता भी है...।
बात मुद्दे की
सामाजिक सशक्तिकरण...?
- 26 Nov 2022