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इंदौर

सूर्य और चंद्र वर्षों के बीच के अंतर को समायोजित करता है पुरुषोत्तम मास-आनंद गिरी महाराज

  • 17 Jul 2023

इंदौर। श्री पंचदश नाम जूना अखाडा, श्री सिद्ध बाबा श्याम गिरी सवाई मठ दिल्ली दरबार के श्री प्रेतराज सरकार बालाजी हनुमान मंदिर महू के पुजारी श्री महंत आनंद गिरी जी महाराज बताते है आज के वक्त नई पीढ़ी संस्कृति से अलग होती जा रही हैं। उन्हें अपनी संस्कृति का कोई ज्ञान नहीं रहता
अपने आधार को भूलना समझदारी नहीं बल्कि अपनी नीव को खोखला करना हैं
आज की नई पीढ़ी को बस यही पता है,अग्रेंजी कैलेंडर में तो हर साल 12 महीने होते हैं, पंचांग या हिंदू कैलेंडर काल गणना की जानकारी बिल्कुल भी नहीं है,श्री महंत आनंद गिरी जी महाराज आज की नई पीढ़ी को बताते है, सूर्य और चंद्र वर्ष की गणना से चलते है,सौर कैलेंडर में 365 दिन और 6 घंटे का एक साल होता है, जिसमें हर 4 साल पर एक लीप ईयर होता है. उस लीप ईयर का फरवरी 28 की बजाए 29 दिनों का होता है. चंद्र कैलेंडर में एक साल 354 दिनों का होता है. अब सौर कैलेंडर और चंद्र कैलेंडर के एक वर्ष में 11 दिनों का अंतर होता है. इस अंतर को खत्म करने के लिए हर तीन साल पर चंद्र कैलेंडर में एक अतिरिक्त माह जुड़ जाता है. वह माह ही अधिक मास होता है. इस तरह से चंद्र कैलेंडर और कैलेंडर के बीच संतुलन बना रहता है. इस वजह से हर 3 साल में एक अधिक मास होता है। पंचांग के अनुसार हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह होता है, एक अतिरिक्त हिंदू पंचांग का एक ऐसा महीना है जिसे सूर्य और चंद्र वर्षों के बीच के अंतर को समायोजित करने के लिए हर तीन साल में पंचांग में जोड़ा जाता है। जिसे मलमास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है। इस साल अधिकमास सावन माह में जुड़ा है, जिस कारण इस बार सावन 59 दिनों का होगा। अधिकमास की शुरूआत 18 जुलाई मंगलवार 2023 से हो रही है और 16 अगस्त 2023 बुधवार को यह समाप्त हो जाएगी। श्री महंत आनंद गिरी जी महाराज बताते है,अधिक मास चातुर्मास से अलग होता है,अधिक मास एक महीने का होता है, जबकि चातुर्मास में चार माह आते हैं।
अधिक मास का नाम मल मास से पुरुषोत्तम मास कैसे पड़ा ?
 मल मास का कोई स्वामी नहीं था, जिसके कारण उसका मजाक बनाया जाता था ऐसे में वो बहुत दुखी था उसने अपनी व्यथा नारद जी से कही. तब नारद जी उसे भगवान कृष्ण के समीप ले गये. वहाँ मल मास ने अपनी व्यथा कही. तब श्री कृष्ण ने उसे आशीर्वाद दिया कि इस मल मास का महत्व सभी मास से अधिक होगा. लोग इस पुरे मास में दान पूण्य के काम करेंगे और इसे मेरे नाम पर पुरुषोत्तम मास कहा जायेगा. इस तरह मल मास को स्वामी मिले और उसका नाम पुरुषोत्तम मास पड़ा.
पुरुषोत्तम मास में क्या करना चाहिए?
इस माह मे किये गये कर्मो का फल अक्षय होता है,दान न किया जा सके तो ब्राह्माणों तथा सन्तों की सेवा सर्वोत्तम मानी गई है। दान में खर्च किया गया धन क्षीण नहीं होता। उत्तरोत्तर बढ़ता ही जाता है। जिस प्रकार छोटे से बट बीज से विशाल वृक्ष पैदा होता है ठीक वैसे ही मल मास में किया गया दान अनन्त फलदायक सिद्ध होता है। इस मास में केवल ईश्वर के निमित्त व्रत, दान, हवन, पूजा, ध्यान आदि करने का विधान है। ऐसा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और पुण्य प्राप्त होता है। भागवत पुराण के अनुसार इस मास किए गए सभी शुभ कार्यों का फल प्राप्त होता है। इस माह में भागवत कथा श्रवण, राधा कृष्ण की पूजा और तीर्थ स्थलों पर स्नान और दान का महत्व है।
पुरुषोत्तम मास मे ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र या गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र का नियमित जप करना चाहिए। इस मास में श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, पुरुषसूक्त, श्रीसूक्त, हरिवंश पुराण और एकादशी महात्म्य कथाओं के श्रवण से सभी मनोरथ पूरे होते हैं। इस मास में शुभ कार्य, मांगलिक कार्य का आरंभ नहीं करना चाहिये केवल धार्मिक कार्यों को करना चाहिए।
अधिक मास में कौन से कार्य वर्जित हैं?
अधिक मास में फल-प्राप्ति की कामना से किए जाने वाले सभी कार्य वर्जित होते है। सामान्य धार्मिक संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह, गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीद आदि नहीं किए जाते है।