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संवाद और परिचर्चा

संवाद और परिचर्चा :  डॉ अपूर्व पौराणिक, न्यूरो सर्जन

  • 12 Jan 2022

संवाद और परिचर्चा :  न्यूरो सर्जन डॉ अपूर्व पौराणिक  - एक न्यूरो सर्जन के रूप में मेडिकल स्टूडेंट को अध्यापन से लेकर मरीजों को देखना , जन स्वास्थ्य शिक्षा ,चिकित्सा शोध हेतु कर्मरत है.... कई विषयों पर  गंभीरता से चर्चा करते हुए उन्होंने अपने विचार प्रस्तुत किए ...(एल. एन. उग्र)
क्या चिकित्सकों में मानवता के गुणों की कमी आ रही है ?
यह बड़ा मुश्किल सवाल है, आमतौर पर ऐसा लगता तो है आम जनता को भी समय के साथ धीरे-धीरे चिकित्सकों में व्यवसाय का पुट बढ़ रहा है, पैसे कमाने का लालच बढ़ रहा है, ढेर सारी अनावश्यक जाच कराते हैं... अनावश्यक अनावश्यक ऑपरेशन कर आते हैं कमीशनबाजी चलती है भ्रष्टाचार चलता है, और एक जो पुराने जमाने के डॉक्टरों में एक इंसानियत होती थी एक कोमलता थी मानवीता थी वह कम हो रहे हैं ..
हो सकता है डॉक्टर के द्वारा जो अनेक अच्छे काम किए जाते हैं उनकी तरफ लोगों का और मीडिया का ध्यान कम जाता है, और जो नकारात्मक बातें होती हैं उनकी तरफ ध्यान ज्यादा जाता है, हां कि हमें लगता है कि दुनिया प्रतिस्पर्धात्मक हो गई है ।
चिकित्सा व्यवसाय में नैतिकता को बढ़ावा देने के लिए क्या किया जा सकता है...?
यह बड़ा कठिन काम है समाज को सुधारने का काम उपदेश देकर या शिक्षा देकर कर पाएंगे मुझे बड़ा डाउट लगता हैं आप स्कूलों में बच्चों को  अच्छी शिक्षा देते हैं नैतिकता का पाठ पढ़ाते है और और उम्मीद करते हैं कि वह अच्छे इंसान बनेंगे आप रामायण जैसे सीरियल टीवी पर चलाते हैं और आप सोचते हैं कि राम जैसे गुण सब में आ जाएंग कौन जाने आते हैं कि नहीं आते हैं या कितने पर्सेंट में आते है अब इस काम के लिए कि डॉक्टरों में नैतिकता हो मानवीयता हो दो रास्ते हैं इसके एक तो डंडा भय कानून वह भी जरूरी है जैसा तुलसीदास जी ने कहा "भय बिन होय न प्रीति" जो भी गाइडलाइंस है जो भी नियम है उनका अच्छी तरह से पालन हो और उनका जो भी उल्लंघन करें उसका जो भी प्रावधान है के अंतर्गत किया जाए लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि हम डॉक्टरों को यह महसूस कराएं अलग-अलग विधियों से की यह उनके स्वयं के हित में है कि उनके अंदर जो नैतिकता की टेंडेंसी है वह बनी रहे अन्यथा उनकी खुद की इमेज खराब हो रही है और उनके तथा जनता के बीच में खाई बढ़ती जा रही है उनके ऊपर हमले होने लग गए हैं  डॉक्टरों को आत्मावलोकन करना चाहिए कि ऐसा क्यों होने लगा है 
इसको लेकर मैंने एक छोटा सा प्रयास किया है "राष्ट्रीय मानवीकीय पुरस्कार" जिसने मेरा यह मानना है कि मेडिकल एजुकेशन के दौरान आर्ट्स के सब्जेक्ट जिनको हम अंग्रेजी में यूमेनीटीस बोलते हैं हिंदी में मानविकी बोलते हैं थोड़ा सा अंश मेडिकल एजुकेशन में मानवीयता का कला और ललित कलाओं का प्रश्न रखें और ऐसा अनेक देशों में अनेक मेडिकल कॉलेजों में हो रहा है और ऐसा माना जाता है कि उसके अंतर्गत डाक्टरों के अंदर मानवीयता की भावनाओं को बढ़ावा देने के अंदर मदद मिलती है और उसको लेकर मैंने पिछले 3 वर्षों से एक राष्ट्रीय पुरस्कार शुरू किया है।
क्या मशीनें कंप्यूटर्स आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक डॉक्टर की व्यक्तिगत कौशल से आगे निकल जाएंगे...?
आजकल मशीनें कंप्यूटर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ई की बड़ी चर्चा होती है और ऐसा लगता है कि कहीं धीरे-धीरे यह कंप्यूटर रोबोट वगैरह डाक्टरों को रिप्लेस तो नहीं करेंगे क्या डॉक्टरों के व्यक्तिगत कौशल का कोई महत्व नहीं रह जाएगा, मेरे को नहीं लगता कि ऐसा होगा एक इंसान के रूप में एक मनुष्य के रूप में एक विशेषज्ञ के रूप में  भूमिका सदैव रहेगी डॉक्टर की भूमिका सदैव रहेगी जितनी भी टेक्नोलॉजी है वह डॉक्टरों की मदद करेगी और हमें उसका स्वागत करना चाहिए हमें टेक्नोलॉजी से घबराने की जरूरत नहीं है हमें उससे उससे दूर भागने की और उससे डरने की भी जरूरत नहीं है और यह भी नहीं सोचना कि टेक्नोलॉजी के आने से डॉक्टरों की जो क्लीनिकल स्केल है बिना मशीन के पुराने जमाने के डॉक्टर के पास जो क्लीनिकल स्केल थी वह मशीन आने के बाद भी डॉक्टर उसको रिटेल कर सकते हैं उसके लिए थोड़ा सा स्पेशल ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है मशीनों से प्राप्त जानकारी का कैसे उपयोग और उसके साथ आपकी जो खुद की क्लीनिकल स्केल है दोनों के बीच सामंजस्य कैसे बिठाना इन दोनों एक दूसरे के पूरक है हमारे बड़ी खुशी की बात है ।
क्या मेडिकल स्टूडेंट और प्रैक्टिशनर्स को रिसर्च में भी रुचि रखना चाहिए ?
यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हमारे  देश मेंमेडिकल स्टूडेंट और पोस्ट  ग्रेजुएट जो रेजिडेंशियल डॉक्टर  होते हैं और बाद में प्रैक्टिस में आ जाते हैं उनमें से बहुत कम लोग हैं जो शोध में और रिसर्च में दखल रखते हैं यह स्थिति बदलना चाहिए मेडिकल कॉलेज के पहले दिन से एक स्टूडेंट को उसके टीचर्स के द्वारा संस्था के द्वारा यह पढ़ाया जाना चाहिए कि ठीक है कि तुमको बहुत सारा ज्ञान प्राप्त करना है लेकिन उसी के समानांतर एक रिसर्च की माइंडसेट उस तरह की मन: स्थिति बना कर रखना है कि चोरी करना उसका मतलब शोध भी करना है और शोध करने का मतलब यह है कि आपके मन में जिज्ञासा होना चाहिए प्रश्न उठना चाहिए वह हल कैसे करना चाहिए उसके लिए डाटा इकट्ठा करना उसके लिए एक्सपेरिमेंट कैसे करना यह सारी चीजें मेडिकल एजुकेशन का बड़ा हिस्सा होना चाहिए और प्रैक्टिशनर्स को भी करना चाहिए जरूरी नहीं कि वह रिसर्च बहुत ऊंचे दर्जे की हो किसी बड़े शोध पत्रिका में प्रकाशित हो लेकिन उसके मन में जिज्ञासा रहेगी, नया से नया सीखने के ललक हमेशा बनी रहेगी और अंततः उनके शोध से जो भी परिणाम निकलेंगे बेहतर डॉक्टर बनाएंगे। समाज का और प्मेडिकल  का इससे फायदा होगा साथ ही  प्रशासन को भी नीतियां बनाने में यह डाटा बड़े काम आएगा ।
सवाल मध्यप्रदेश शासन द्वारा हिंदी माध्यम से मेडिकल एजुकेशन की योजना के बारे में आपकी क्या राय है ?
मध्यप्रदेश शासन द्वारा हिंदी माध्यम से मेडिकल एजुकेशन के बारे में मेरी क्या राय है मेरा शुरू से मानना है कि शिक्षा के माध्यम के रूप में हमारी मातृभाषा हिंदी और अन्य राष्ट्रीय भाषाओं को हमने दुर्भाग्य रूप से खो दिया है खोते चले जा रहे हैं और तमाम माता-पिता और तमाम पेरेंट्स इंग्लिश मीडियम के पीछे भागे जा रहे हैं, अब इसमें उनकी भी क्या गलती है क्योंकि वो अंग्रेजी को हमारी संभावना की भाषा मानते हैं ,आकांक्षा पूरी होती है पूरा समाज इस तरह का बन गया है। लेकिन इसके ऊपर हमें सोचने की जरूरत है इसके खिलाफ हमें काम करने की जरूरत है और मुझे खुशी है कि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी जो पिछली सरकार ने  घोषित की थी ,उसमें उन्होंने स्कूल शिक्षा के अंदर और बाद में भी भारतीय भाषाओं के माध्यम से चिकित्सा और अन्य तकनीकी शिक्षाओं को देने का संकल्प लिया है ।अंग्रेजी को एक भाषा के रूप में पढ़ाया जाए इससे भला किसका विरोध है, उसको मीडियम ऑफ एजुकेशन बनाया जाए पढ़ाई का माध्यम बनाया जाए वह गलत है। लोग सोचते हैं कि चिकित्सा शिक्षा को हिंदी में या भारतीय भाषाओं में कैसे करोगे तो मेरा ऐसा मानना है कि यह काम बहुत कठिन नहीं है, "जहां चाह वहां राह "इसको हम कर सकते हैं !धीरे-धीरे होगा समय लगेगा और मेरा ऐसा मानना है कि इसे हम शुद्ध हिंदी में तो नहीं कर पाएंगे हम इसे मिली जुली भाषा में हिंदी और अंग्रेजी के साथ तकनीकी शब्द अंग्रेजी के वाक्यांश होते हैं बाकी जो पैराग्राफ होते हैं हमारी भाषा में रहेंगे । मेरा अपना अनुभव है समय-समय पर हिंदी में व्याख्यान मेडिकल कॉलेज में लेता रहा हूं और हिंदी में लेख लिख रहा हूं चिकित्सा पर और मैंने यह महसूस किया है कि आम जनता मरीज और उनके परिजन रिश्तेदार और स्वास्थ्य कर्मी डॉक्टर एमबीबीएस एमडी तक के वह सब हिंदी में व्याख्यान सुनते हैं हिंदी में आलेख पढ़ते हैं,  तो वे उसे अच्छे से अंगीकार करते हैं ! मध्यप्रदेश शासन यदि कोई ऐसी योजना बनाता है तो मैं उसका स्वागत करता हूं! (एल .एन. उग्र - PRO )