Highlights

इंदौर

सहकारिता विभाग में आधे से भी कम स्टाफ, तबादले वाले अधिकारी रिलीव, विभाग ने भेजा किसी को नहीं

  • 27 Aug 2021

इंदौर। सहकारिता उपायुक्त कार्यालय से जिन 10 अंकेक्षण अधिकारियों (एओ) और सहकारी निरीक्षकों (सीआइ) के तबादले हुए हैं, उनमें से सात को रिलीव कर दिया गया है। अब यहां आधे से भी कम स्टाफ बचा है। ऐसे हालात के बीच अधिकारियों को काम करने की चुनौती मिली है, जबकि प्रदेश में सर्वाधिक सहकारी संस्थाएं इंदौर में हैं।
बताया जाता है कि उपायुक्त कार्यालय में 88 पद स्वीकृत हैं, लेकिन यहां 48 एओ और सीआइ ही पदस्थ थे। हाल ही में 10 एओ और सीआइ के तबादले के बाद अब 38 ही बचे हैं। इस तरह स्वीकृत पदों से 50 कर्मचारी कम हैं। इंदौर से एक थोक तबादले तो कर दिए लेकिन सहकारिता मुख्यालय ने अब तक नए अंकेक्षण अधिकारी (एओ) और सहकारी निरीक्षकों (सीआइ) को नहीं भेजा है, जबकि तबादला आदेश को 16 दिन से अधिक हो चुके हैं। ऐसे में उपायुक्त कार्यालय में कर्मचारियों की काफी कमी हो गई है। इंदौर उपायुक्त कार्यालय में अब स्वीकृत मानव संसाधन का आधे से भी कम स्टाफ रह गया है। इंदौर में कई गृह निर्माण सहकारी संस्थाओं में जमीन, भूखंड और सदस्यता संबंधी विवाद हैं। इनमें से कुछ संस्थाओंं पर भू-माफिया का कब्जा है। कई संस्थाओं में सहकारिता विभाग के अलावा राजस्व, नगर निगम, नगर तथा ग्राम निवेश और इंदौर विकास प्राधिकरण से संबंधित बाधाएं हैं। ऐसे में अकेले सहकारिता अधिकारियों द्वारा इनका निराकरण मुश्किल ही नहीं, असंभव हो गया है।
फिलहाल कुछ चुनिंदा संस्थाओं में जिला प्रशासन द्वारा संयुक्त कार्रवाई की जा रही है। उल्लेखनीय है कि सहकारिता मुख्यालय भोपाल ने उपायुक्त कार्यालय से 10 एओ और सीआइ के तबादले किए हैं। इनमें से वरिष्ठ सहकारी निरीक्षक सुनील रघुवंशी, संतोष जोशी, उप अंकेक्षक आइसी वर्मा, एमएम श्रीवास्तव, सहकारी निरीक्षक प्रमोद तोमर, सुरेशकुमार भंडारी और अजय पाठक को रिलीव कर दिया गया है। अंकेक्षण अधिकारी संजय कौशल, सहकारी निरीक्षक प्रवीण जैन और जगदीश जलोदिया का भी तबादला हुआ है, लेकिन फिलहाल इनको रिलीव नहीं किया गया है। जिला प्रशासन द्वारा भू-माफिया के खिलाफ चलाए गए अभियान में इनके पास कुछ विवादित संस्थाओं की जिम्मेदारी होने से इनको रिलीव नहीं किया गया। संयुक्त आयुक्त कार्यालय में नियुक्त सहकारी निरीक्षक हनुमानप्रसाद गोयल का भी तबादला हुआ है, लेकिन उनके पास संस्थाओं के न्यायालयीन प्रकरणों की जिम्मेदारी होने से उनका विकल्प न मिलने तक रोका गया है।