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हर किसी से लगाई गुहार, नहीं सुनी फ्रीडम फाइटर की फरियाद

  • 14 Aug 2021
  • पेंशन के लिए दर-दर भटके नहीं मिली तो लगाई थी खुद को आग

  • अब 90 साल की पत्नी पेट भरने के लिए चरा रहीं दूसरों के मवेशी


बैतूल। देश की आजादी के लिए लडऩे वाला सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते-काटते इतना दुखी हो गया कि खुद को आग के हवाले कर दिया। वो चले गए, दो बच्चे हैं, उन्होंने मुंह मोड़ लिया। घर भी जर्जर हो गया। अपना पेट भरने अब दूसरों के मवेशी चरा रही हूं। यह दर्दभरी दास्तां हैं, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. द्वारका प्रसाद वर्मा की 90 साल की पत्नी चंपाबाई की। डबडबाई आंखें और थर्राती आवाज में वे बस यही कहती हैं कि सब से तो कह दिया, अब किससे क्या कहें।
देश को आजादी दिलाने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वर्मा ने अंग्रेजों के कई जुल्म सहे, जेल भी गए। लेकिन आजादी मिलने के बाद वे पेंशन के लिए लिए दर-दर भटके। उनके जाने के बाद उनकी पत्नी बदहाल जीवन जीने को मजबूर है। सेनानी की पत्नी को अभी भी पेंशन का इंतजार है। उनकी हालत इतनी दयनीय है कि पेट भरने के लिए उन्हें दूसरों के मवेशी चराना पड़ रहे हैं। घर के नाम पर उनके पास एक झोपड़ी है।
स्वंत्रता संग्राम सेनानी वर्मा ने पेंशन के लिए लंबी लड़ाई लड़ी, लेकिन हाथ में एक पैसा नहीं आया। 2002 में पेंशन नहीं मिलने से दुखी होकर उन्होंने आत्मदाह कर लिया था। ग्रामीणों का कहना है कि आत्मदाह करने से पहले भी उन्होंने एक बार कुएं में कूदकर जान देने की कोशिश की थी, लेकिन उस समय लोगों ने उन्हें बचा लिया था। उन्हें फिर ऐसा नहीं करने की समझाइश भी दी थी। उनकी आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि अंतिम संस्कार भी गांववालों ने चंदा कर किया था।
सरकारी संपत्ति को आग लगाई थी
वर्मा भारत छोड़ो आंदोलन में भी शामिल थे। इसी कारण उन्हें 21 नवंबर 1942 को जेल भी जाना पड़ा था। 7 दिनों तक जेल में रहने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने साथियों के साथ मिलकर सरकारी संपत्ति को आग के हवाले किया है। उस समय सेनानियों ने रेलवे स्टेशनों के साथ कई सरकारी दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया था। इसका जेल प्रशासन ने प्रमाण पत्र भी जारी किया था।
मिला तो सिर्फ बस का फ्री पास
सेनानी के तौर पर उन्हें केवल बस यात्रा के लिए फ्री पास दिया गया था। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री रहते दिग्विजय सिंह ने उन्हें केवल प्रशस्ति पत्र दिया था। हर राष्ट्रीय पर्व पर उन्हें बतौर सेनानी के रूप में आमंत्रित तो किया गया, लेकिन पेट भरने के लिए जरूरी पेंशन दिलवाने की जहमत किसी ने नहीं उठाई।
अब पेंशन की फाइल खोजने की तैयारी
पेंशन के लिए संघर्ष करते हुए वर्मा ने जान दे दी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के संघ ने भी उनकी पेंशन के लिए कई प्रयास किए, हालांकि उनके साथ जेल गए बाकी साथियों को पेंशन मिली। 9 अगस्त 2009 को तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर ने जांच के बाद जिला कोषालय अधिकारी को भी पत्र भेजकर चंपा बाई को पेंशन देने की प्रक्रिया को पूरा करने को कहा था, लेकिन पत्र और जांच का आज तक कुछ नहीं हुआ। इस मामले में अब संयुक्त कलेक्टर एमपी बरार का कहना है कि वे पूरे मामले की फाइल ढूंढवाकर पेंशन दिलवाने की प्रक्रिया करेंगे।
वे भी भटकते रहे
वृद्ध महिला का कहना है कि साहब! मैं आज भी पेंशन पाने के लिए लड़ाई लड़ रही हूं। जब वे जिंदा थे तो वो भी अपना हक पाने दफ्तर-दफ्तर भटकते रहे। क्या बैतूल  क्या भोपाल, क्या अधिकारी... क्या विधायक और क्या मंत्री। हर किसी से गुहार लगाई, लेकिन सबसे एक ही जवाब मिला- मिल जाएगी पेंशन। अधिकारी तो कहते हैं पैसे नहीं हैं अभी। आएंगे तो मिल जाएंगे।